पटना. न्याय के साथ विकास अभियान में कमजोर तबके का उत्थान, महिला सशक्तिकरण और सत्ता का विकेंद्रीकरण सरकार की प्राथमिकता है। इसके बावजूद जन सरोकार से सीधे जुड़ाव रखने वाली योजनाओं में सुस्ती बरकरार है। चालू वित्तीय वर्ष के नौ माह में योजना राशि के खर्च की गति कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही है।
एक तरफ सामाजिक उत्थान की योजनाओं में उदासीनता है तो दूसरी ओर निर्माण क्षेत्र पर जबरदस्त खर्च हो रहा है। नतीजतन 57 137 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 65061 करोड़ रुपए किए जा चुके योजना आकार में अबतक मात्र 47 प्रतिशत राशि खर्च की जा सकी है। हालत यह है कि बची राशि को खर्च करने के लिए सरकार को 90 दिनों तक रोजाना 377 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
राज्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण से जुड़े विभागों बड़े पैमाने पर राशि खर्च हो चुकी है। एक तरफ पथ निर्माण विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग और भवन निर्माण विभाग में योजना राशि का 60 प्रतिशत या उससे अधिक खर्च हो चुका है। वहीं दूसरी ओर समाज कल्याण विभाग, पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग और एससी-एसटी कल्याण विभाग में 55 प्रतिशत भी राशि खर्च नहीं हो पाई है। सिर्फ अल्पसंख्यक कल्याण में ही 65 प्रतिशत से अधिक राशि खर्च हो सकी है।
गरीबों को इंदिरा आवास मुहैया कराने वाले विभाग ग्रामीण विकास में मात्र 40 प्रतिशत रकम खर्च की जा सकी है। इसी तरह एमपी और एमएलए की सिफारिश पर जन सरोकार से सीधा जुड़ाव रखने वाली छोटी-छोटी योजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी संभालने वाले योजना और विकास विभाग में भी अब तक 46 प्रतिशत राशि खर्च हो पाई है।
स्वास्थ्य विभाग ने 52 प्रतिशत, जबकि शिक्षा विभाग ने 52 प्रतिशत राशि खर्च कर दी है। कृषि के विकास पर सरकार का सबसे अधिक जोर है। फिर भी कृषि विभाग ने 22 प्रतिशत जबकि पशुपालन और मत्स्य संसाधन ने 18 प्रतिशत रकम खर्च किए।
चालू वित्तीय वर्ष में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में आगे, पर जनकल्याण में पिछड़े
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18:12:00
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