रोहतास जिला के उत्तरी छोर पर बियावान में बैठी मां याक्षिणी भवानी की चर्चा श्रीमद् देवी भागवत और मार्कन्डेय पुराण में भी मिलती है। जिसे कलांतर में कई प्रसंगों के बाद भलुनी भवानी का नाम मिला। आदी गुरु शंकराचार्य ने भी कई बार चर्चा की है इस अष्टभूजी पौराणिक सत्यपीठ की। वैसे बाल्मिकि रामायण और बाद के शाहाबाद गजटीयन भी याक्षिणी भवानी की चर्चा पाई गयी है।
ऐसी मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद अहंकार से भरे इंद्र को यही आकर देवी याक्षिणी ने सत्य का पाठ पढाया था। इसके बाद देवेन्द्र के सारे अहंकार चूर-चूर हो गये। लज्जित होकर इंद्र ने कंचन नदी के किनारे घनघोर तपस्या की, जहां मां याक्षिणी भवानी ने अपना अष्टभुजी रुप इंद्र को दिखलाया। ध्यानमग्न इंद्र को सोने के सिंहासनारुढ़ भगवती के दर्शन हुए, जो सजीव रुप को त्यागकर प्रतिमा के आकार में आ गई।
वहीं पर इंद्र ने मां की स्थापना की तबसे भलूनी धाम में याक्षिणी भवानी विराजमान हुई।
भलुनी भवानी(याक्षिणी भवानी) धाम, भलुनी (नटवार)
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