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बॉलीवुड में बिहार - जानिए शॉटगन का शानदार फिल्मी सफ़र

'बिहारी बाबू', 'शॉटगन', 'कालीचरण', 'छेनू', 'खामोश' नाम से
मशहूर बिहार के हरदिल अजीज शत्रुघ्न सिन्हा किसी परिचय
के मोहताज नहीं हैं। 9 दिसंबर 1945 को पटना में जन्मे शॉटगन
चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। दिलचस्प बात ये हैं कि इनसे बड़े
भाइयों के नाम राम, लक्ष्मण और भरत है। भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा और श्यामदेवी सिन्हा की चौथी
संतान शत्रुघ्न सिन्हा का पढ़ाई के साथ-साथ अदाकारी में
भी रूझान था। लिहाजा पटना साइंस कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म
करने के बाद उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में क़दम रखा। शुरुआत में
अदाकारी का ककहरा सीखने के लिए उन्होंने पुणे स्थित
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया का रुख किया।
वहां उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए स्कॉलरशिप भी मिली।
FTII से एक्टिंग की ABCD सीखने के बाद शॉटगन अपने सुनहरे
भविष्य को संवारने के लिए मुंबई निकल पड़े। काफी जद्दोजहद
के बाद उन्हें देवानंद की फिल्म 'प्रेम पुजारी' में पाकिस्तानी
मिलिट्री ऑफिसर का छोटा, लेकिन दमदार किरदार मिला।
इसी दौरान साल 1969 में ही उन्होंने मोहन सहगल की मूवी
'साजन' में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका की, जो उनकी पहली
रिलीज फिल्म थी। देव साहब की मूवी 'प्रेम पुजारी' के
प्रदर्शित होने में किसी कारणवश देर हो गयी।
साल 1971 में गुलज़ार द्वारा निर्देशित फिल्म 'मेरे अपने' में मुख्य
किरदार निभाने से पहले वे कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के
तौर पर अपनी साख बना चुके थे। इसके बाद साल 1973 शॉटगन ने
'सबक' की, जिसमें उनके साथ पूनम सिन्हा को कास्ट किया
गया। बाद में साल 1974 में दुलाल गुहा की फिल्म 'दोस्त' की। अदाकारी की दुनिया में बिहार का नाम रोशन करने गये
शत्रुघ्न सिन्हा की पहचान साल 1976 में सुभाष घई निर्देशित
पहली मूवी 'कालीचरण' से मिली, जिसमें वे दमदार अदाकारी
और डायलॉग डिलीवरी की वजह से दर्शकों के दिलों पर राज़
करने लगे। ये फिल्म सुपर-डुपर हिट रही। फिर क्या था- शॉटगन
की गाड़ी फिल्मी दुनिया में सरपट दौड़ने लगी। बाद में 'कालीचरण' तेलुगू, तमिल और मलयालम भाषाओं में भी
बनी। इसके बाद साल 1978 में सुभाष घई, शत्रुघ्न सिन्हा और
रीना रॉय की तिकड़ी ने एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर
धमाल मचा दिया। इस मर्तबा इनकी फिल्म 'विश्वनाथ'
रिलीज हुई, जिसने कई कीर्तिमान स्थापित किए और लोगों
को अपना दीवाना बना दिया। इसके बाद काला पत्थर, नसीब, खुदगर्ज, वक्त की दीवार,
क्रांति, शान, जानी दुश्मन, आंधी-तूफ़ान, आग ही आग जैसी कई
सुपरहिट फिल्मों की झड़ी लगा दी।

 शत्रु के दमदार डायलॉग
जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं...जिस राख से
बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं। (विश्वनाथ)
जब दो शेर आमने-सामने खड़े हों...तो भेड़िए उनके आस-पास नहीं
रहते। (बेताज बादशाह)
अबे साले घोंचू..
हम तेरे पैरों के नीचे की ज़मीन इतनी गरम कर देंगे...कि तेरे जूते तक
में छाले पड़ जाएंगे । (आन)
बिल्ली के नाखून बढ़ जाने से..बिल्ली शेर नहीं हो जाती।
(आन) 
हाथी अगर चींटी के ऊपर पैर रख दे तो चींटी मरती नही...उसे
मसलना पड़ता है। (रक्तचरित्र)
हम वो पंडित हैं जो शादी भी कराते हैं और श्राद्ध भी। (बेताज
बादशाह)
आज के बाद अगर दुबारा कोई ऐसी हरक़त की ना...तो ये हाथ
खाने के लायक तो क्या..धोने के लायक भी नहीं रहेगा।
आज के जमाने में बेईमानी ही ऐसा धंधा रह गया है, जो पूरी
ईमानदारी के साथ किया जाता है। (कालीचरण)
फिल्मी दुनिया की पिच पर लंबी पारी खेलने के बाद शॉटगन ने
सियासी जीवन में भी एंट्री मारी। वे शुरुआत से ही भारतीय
जनता पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। वे लोकसभा और
राज्यसभा में भी कई मुद्दों पर मुखर होते रहे हैं। वे अटल जी
सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर भी बने ।
इस दौरान वे स्वास्थ्य मंत्री (जनवरी 2003-04) और जहाजरानी
मंत्री भी बने। फिलहाल वे पटना साहिब से सांसद हैं।
70 एमएम के रुपहले पर्दे के बाद सियासी जीवन में भी उनका
विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है। कई फिल्मों में
उनकी नायिका रही रीना रॉय के साथ प्रेम-संबंधों की वजह से
जहां चर्चित रहे, वहीं राजनीतिक पारी के दौरान पार्टी
लाइन से हटकर दी गयी बयानबाजी की वजह से हमेशा
सुर्खियों में बने रहते हैं। फिलहाल वे अपनी आत्मकथा 'खामोश'
की वजह से चर्चित हैं।



बॉलीवुड में बिहार - जानिए शॉटगन का शानदार फिल्मी सफ़र बॉलीवुड में बिहार - जानिए शॉटगन का शानदार फिल्मी सफ़र Reviewed by Unknown on 17:07:00 Rating: 5

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